पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३०५

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भारतके माचीन राजबंश हैं, अतः उसको सार हाङ दर उसकी आज्ञा मैंगवाती हूँ तत्रत आप टड़ाई बंद रखें । इस प्रकार राजपूत सेनाको विश्वास देकर आप उनपर अचानक हृमी ने तैयारी में लगा जोर सर्योइसके : पूर्व ही नदी पार कर उनपर आ दूझ । यह देख हिन्दू भी सैमलकर छने लगे । हुस्तानने आपनी फौज ४ दुकड़े कर उन्हें वारी वारी राजपूत सेना पर हमला करने और सामने से भाग फर पीछे आती हुई दाजु-सेनापर पलट कर पीसे इमटा करनेका आदेश दिया । इस प्रकार दिनभर लड़ाई होती रही और जय हिंदु थक गये तव सुलतानने अपनी १२०० रक्षित सेना ठेका उनपर हमला किया । इस पर राजपूत फौन हार और अनेक अप राजा राम का चामुणराप मारा गया तथा अजमेरका राजा पिथोराप ( पुरान ) सरगतके तौरपर पकड़ा जाकी मारा गया । विजयी सुलतान अजमेर पहुंचा और वहाँर सामना करनेवाले १६ हजार नगरवासियों को मारकर और फर देने की शर्तपर विधाय १ पृथ्वीरान} के पुत्र कोलाको अजमेर प राधं दिल्ली की तरफ चल पड़ा । वहाँ पहुँचने पर दिल्ली नॉन शनाने इसकी वइगता स्वीकार ६i ! इनके यात्रु तीन एथकही सेनासहित हराममें छोड़ सुलतान उत्तरी हिन्दुस्तानके, सिवाल पर की तरफ होता हुआ गजनी चला गया । उसके याइ कुक्षुद्दीन ऐबकने पामुण्ड्रायके उत्तराधिकारियोंसे दिल्ली और मेरठ ीन डिमा और हि० स० १८९.(वि० सं० १२५६-६०स० ११५३ ) में दिल्ली अपनी राजधानी बनायो ।” नवलकिशोरभैसकी छपी फरिश्ताङी वाउमें उपर्युक बुचन्ति छ फेर फारसे डिज़ा है। उसमें १२००२९ सबा३'स्थानपर १०७००० सवार और चामुण्ड्रायी जगह संईय लिया है। () Brig's Farietits, val., P, 13-175,