पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३८

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भारतके प्राचीन राज्ञवा नामकरण न होकर, इसे प्रसिद्धिमें लानेवाले के नाम पर हुआ, तो किसी प्रकारकी गड़बड न होगी । यह बात सम्भव भी है । परन्तु जर्म तक पूरा निश्चय नहीं हुआ है । | बहुतसे विद्वान इसको प्रतिष्ठानपुर ( इकिंगके पैठण) के राजा शालिवाहन ( सातवाहन ) का चलाया हा मानते है। जिनममूरि-- गचित कल्पप्रदीप भी इसी मती अग्नि होती है। अलनीने लिखा है कि शक राजाको हरा कर विमादित्पने ही उसे विनयकी यादगारमें यह सवत् प्रचलित किया था। कच्छ और कार्डिंगगड से मिले हुए चसे पहले के क्-सत् ५२ से १५३ तक क्षेत्रपाके लेखों में और कीव शक-सवत् १०० से शक-सुबत् ११० तब के सिक्कमि केवल सवत् ही लिखा मिलता है, उसके साथ कृथि 'श' शब्द नहीं जुड़ा रहता ।। | पले पहुल इस सबके साय शकशदका विशेषण बराAreरचित सस्कृती पञ्चसिद्धान्तिकामें ही मिला है। यथा | 4 सप्ताश्ववैदस्य शाहमपाद बैंगा' इसमें प्रकट होता है कि ४२७ वें वर्ष यह सवत् शङ्क-सवनकै नामले प्रसिद्ध हो चुका था । तया शकसयत् १ २६३ कके लैस | और ताम्रपत्नसे प्रकट होता हैं कि उस समय तक यह सब ही Bा जाता था, जिंसा 'इक राजाका सन् !' या का सवत् ' में दोनों ही अयं हो सकते हैं। शक-वन १२७, के यादव रागा बुरा प्रपम दानप इस सबके साय शालिवाहन ( सातवाहन ) का भी नाम जुड़ा हुआ 1ला है। यया (7)EIod, Tol FOL, P 19