पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/९५

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भारतके प्राचीन राजवंश पहला चै० स० ९५६ का पूर्वोक्त जयहिजेयके सामन्त महाराणा कीर्तिवर्मा , दूसरा वि० ० १२५३ दिनम (सिंह) देवळे सुमन्त महाराणर्क रालराणवम्बका, हीररी वि० स० १२५७ का चैलोम्पधर्मदेबके सामन्त महाराणक कुमारपालदेवकों और घोपा ० १० १९९८ का नेपयर्मदेयके मन्त्र महाराजक हरिराजयको। ऊपर उल्लिग्नित तापनि अपसिंहदेव विशय (सिंह) देव ! म्यवर्मदेव इन तीना स्त्रितरत्र इस प्रकार लिखा है- "

  • परमभरिक महाराजाधिराज परमेश्वर परममावर माम३३ पादानुष्यात परमभद्दारक महाराजाधिराज परीवार निकलिङ्गाधिपति निजनमाताश्वपत गजपतिं नरपति राजेनयाधिपति ।”

ऊपर वण ये हुए तीन रानामैसे नपसिंहदेव और (जय(सिंह } ३ को जनरल फानइएम था डाक्टर हार्ने, फलयशकै मानते हैं, और तीसरे राना लोक्यवर्मइँयका चदेठ होनी अनुमान करते हैं, परन्तु उसके नामके साथ जो खिताब झिसे गए हैं, में इन्वेलोंके नहीं, किंतु इयॉही हैं । अत जब तक उनका चन्देल ना दुसरे प्रमाणसे हिट्स न हो तब तक उक्त युरोपियन विहानकी चात पर विश्वास करना उचित नहीं हैं। | वि० स० १२५३ तर्क विजयासहदेब विद्यमान या । सम्भवत इसके बाद भी वह जीवित रा हो । उसके पीछे उसके पुत्र अजयसिंह तो लावद्ध इतिहास मिलता आता है । पर उसके दो वः सः १२९८ में लोक्यपर्म राजा हो। उसी समयके आसपास के बघेलनं विपरीके के रज्यिको नष्ट कर दिया। इन एपबशयोंकी मुद्रामें चतुर्मुग लक्ष्मीको मूर्ति मित्त है, ञिसमें दोनों तरफ हाथ होते हैं। ये पगा और चे। इनके में बेक्का निशान बनाया जाता था। (1) Ind HD, Val XVII P 331 () Ind Ant Vol XYIP 395. ५४