पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६०८

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१६४५
लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

तथ्यों का लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे १६४५ पार कर बढ़ी चली आ जा रही थी। नागपुर से तात्या को कोई “हायता न मिल सकी । लाचार होकर तात्या ने प्रय बड़ौदा की चोर बढ़ने का विचार किया । नर्मदा के हर घाट पर दोनों और अंगरेजी सेना पड़ी हुई थी। तात्या , मेजर सण्डरलैण्ड की सेना के ए. " साथ टसका एक संग्राम हुया । तात्या ने आती किक कूच अपनी सेना को अंज्ञा दी कि सब तोपें पीछे छोड़ करनर्मदा में कूद पड़ो। ताया और उसकी सेना एक पत भर के अम्टर नर्मदा के पार दिग्खाई दी। मॉलेतन लिखता है संसार की किसी भी सेना ने कभी कहीं पर इतनी तेज़ी के साथ कूच नहीं किया जितनी तेजी के साथ कि तारया की भारतीय सेना इस समय कूच कर रही थी । तात्या राजपुरा पहुँचा, बहाँ के सरदार से उसने घोड़े और कुछ धन वसूल किया। अगले दिन वह छोटा नबाय बड़ौदा दा का उदयपुर पहुंचा । यहाँ से केवल ५० मल था। इतने में पार्क के अधीन ग्रंगरेजी सेना छोटा उदयपुर आ पहुँची। तात्या को बड़ोदा का विचार छोड़ देना पड़ा । औय बह फिर उत्तर की ओर मुड़ा। ठीक इस समय बाँद के नवाब ने निराश होकर मलका विक्टोरिया के एलान के अनुसार हथियार रख दिए । तात्या और रावसाहेब अकेले रह गए। मॉसन लिखता है "किन्तु ये दोनों नेता इस कठिन थपत्ति के समय भी इतने ही ग्राम समर्पण