५१६ भारत में अंगरेजी राज लामोजी के पास मौजूद था ही। उसने इस बार रेजिडेण्ट मैक्ला- उड का खूब साथ दिया । सब से पहले राजा अमरसिंह पर यह इलज़ाम लगाया गया कि तुम तुलजाजी की विधवा रानियों के साथ और उसके दत्तक पुत्र सार्बोजी के साथ अच्छा सलूक नहीं करते, जिससे उन्हें बहुत कष्ट है। इन इलज़ामों का केवल मात्र प्राधार पादरी पूवार्ट्स की शिकायतों पर था जो किसी तरह भी विश्वास के योग्य नहीं समझी जा सकती। इस बदसलूकी के बहाने से ज़बरदस्ती साबोंजी को और तुलजाजी को विधवाओं को मद्रास बुला लिया गया। सार्बोजी को बहका कर तैयार करने का काम पादरी पूवार्ट्ज़ के सुपुर्द था। सन् १७६८ में एकाएक अंगरेजों पर यह रहस्य खुला कि वह अमरसिंह, जिसे स्वयं अंगरेज़ों ने गद्दी पर बैठाया था और जिसे वे लगभग दस साल तक तओर का राजा स्वीकार कर चुके थे, गही का अधिकारी नहीं है, बल्कि वास्तविक अधिकारो तुलजाजी का दत्तक पुत्र सार्वोजी है, जिसके गोद लिए जाने को दस साल पहले इन्हीं अंगरेजों ने पण्डितों से 'शास्त्र विरुद्ध' कहला दिया था। इस समय कुछ विद्वान पण्डितों ने पिछली व्यवस्था के विरुद्ध फिर सार्बोजी के पक्ष में व्यवस्था दे दी। राजा श्रमरसिंह से किसी तरह की पूछताछ तक नहीं की गई, और कम्पनी की उस सेना ने जिसे १० साल तक राजा अमरसिंह अपने खर्च से पाल चुका था, तुरन्त उसे तोर की गही से उतार कर सार्वोजी को उसकी -जगह बैठा दिया।
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