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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१०२

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५१५
तज्जोर राज्य का अन्त

तओर राज का अन्त ५१५ करता रहा था। कोई बहाना उससे राज छीनने का कम्पनी के पास न था। अंगरेज़ संसार को यह दिखाना चाहते थे कि अमर सिंह खुशी से अपना गज कम्पनी को दे रहा है, किन्तु यह चाल न चल सकी। रेजिडेण्ट का जुल्म साबित था। राज के अन्दर साज़िश अभी पूरी तरह पक्की न थी। लाचार होकर गवरनर जनरल ने रेज़िडेण्ट को हुकुम दिया कि राजा अमरसिंह का सारा राज उसके हाथों में रहने दिया जाय । दूसरी ओर साजिश को पक्का करने की कोशिशें जारी रहीं। दो साल बाद मार्किस वेल्सली का समय श्राया । वेल्सली को इंगलिस्तान ही में श्रादेश मिल चुका था कि तार पर कब्जा जिस तरह हो सके, तोर के राज पर कम्पनी का कब्ज़ा जमाया जावे। इंगलिस्तान के शासकों से वह बादशाहतों पर बादशाहते लाद देने का वादा कर चुका था। जिस लेखक के कई वाक्य हम ऊपर नकल कर चुके हैं, वह लिखता है :- ____“जब कभी माननीय ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नीति या उसके स्वार्थ के लिए इस बात की जरूरत मालूम होती थी कि किसी भारतीय नरेश को गद्दी से अलग किया जावे, तो बहाने को कभी कमी न होती थी।"* . अब सार्बोजी को राजा अमरसिंह के विरुद्ध साजिशों का केन्द्र बनाया गया। पादरी पूवा इस काम के लिए अरसे से .". . . . whenever policy or aggrandisement seemed to warrant the measure a pretext was never wanting to the Honorable East India Company, to removearative prince,"-Ibid p. 138