५२६ भारत में अंगरेजी राज कम से कम दो योग्य अंगरेज़ इतिहास लेखकों ने मोहम्मदअली और उमदतुल उमरा के चरित्र, टीपू के साथ विश्वस्त अंगरेज उनके ३० साल के सम्बन्ध, उस समय की इतिहास लेखकों तमाम स्थिति और जाँच कमीशन की गवाहियों की राय की पूरी तरह जांच करके यह साफ़ राय जाहिर की है कि मोहम्मदअली और टीपू के "गुप्त पत्र व्यवहार" का यह सारा किस्सा जाली और झूठा है। इनमें इतिहास लेखक मेजर ईवन्स बेल का कथन है- "हमसे प्राशा की जाती है कि हम इस बात पर विश्वास कर लें कि जो नवाब वालाजाह पञ्चास साल तक अंगरेजों का वफादार दोस्त और मददगार रह चुका था, जो तीस साल तक हैदरअली और टीपू सुलतान के साथ करीव करोष लगातार युद्ध कर चुका था और जिसे नुकसान पहुंचाने और नीचा दिखाने का कोई मौका इन दोनों ने और खासकर टीपू ने हाथ से जाने नहीं दिया था-उस वालाजाह को एकाएक बुढ़ापे में जाकर अपने तीस साल के पुराने शत्रुओं से मिलकर अपने प्राधी शताटदी के दोस्तों के विरुद्ध साज़िश करने की सूझी । और हमसे इस बात पर भी विश्वास कर लेने के लिए कहा जाता है कि बूढ़े नवाब ने अपने इस तरह अचानक रुन बदलने के लिए ठीक वही समय चुना जब कि उसके दोस्तों को ताकत इतनी पक्की जम चुकी थी कि जाहिरा कोई उनका मुकाबला करने वाला न रहा था और जब कि उसके पुराने दुरमन का बल यहाँ तक चूर हो चुका था कि उसके उमरने की कोई पाशा न थी। वानाजाह और उमदतुल उमरा पर इलज़ाम यह है कि उन्होंने टीपू के साथ ये साजिशें लॉर्ड कॉर्नवालिस के युद्ध के बाद
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