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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/११७

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५३०
भारत में अंगरेज़ी राज

५३० भारत में अंगरेजो यज कहने लगा-महल के अन्दर घुसकर मुझे मेरी रिपाया की नजरों में न गिराइए !" ५ जुलाई से १५ जुलाई तक कम्पनी की सेना ने महल को घेरे रक्खा। १५ जुलाई को नवाब उमदतुल उमरा की मृत्यु हुई । अन्त तक अंगरेज अफसर बूढ़े नवाब के पास रहे और उसे अपनी मित्रता का विश्वास दिलाते रहे । उमदतुल उमरा का बेटा शहज़ादा अलीहुसेन भी उसी महल में था। जिस दिन उमदतुल- उमरा का शरीर छूटा उसी दिन करनाटक की मसनद के वारिस शहज़ादे अलीहुसेन को जबरदस्ती कमरे से बाहर लाकर अंगरेजों ने अचानक उसे यह सूचना दी कि तुम्हारे बाप और दादा ने अंगरेजों के खिलाफ़ हैदर और टीपू के साथ गुप्त पत्र व्यवहार किया था, इसलिए गो तुम्हें उसका कोई पता नहीं, फिर भी गवरनर जनरल का फैसला है कि अपने बाप की मसनद पर बैठने के बजाय तुम एक मामूली रिपाया की हैसियत से अपनी बाकी ज़िन्दगी व्यतीत करो। शहज़ादे को डराकर उससे कहा गया कि तुम तओर की सन्धि की तरह की एक सन्धि पर दस्तखत कर दो। खेमों के अन्दर शहज़ादे अलीहुसेन और अंगरेज अफ़सरों में बात. चीत हो रही थी और बाहर कम्पनी के सिपाही नंगी तलवारे लिए फिर रहे थे । इतने पर भी अलीहुसेन ने न माना। इसके बाद अलीहुसेन को अलग करके और बीच के कई हकदारों को छोड़ कर अलीहुसेन के एक दूर के करनाटक की रिश्तेदार आजमुद्दौला से अंगरेजों ने वहीं पर नवाबी का अन्त बातचीत शुरू की। श्राजमुद्दौला ने अंगरेजों की