पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१२१

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भारत में अंगरेज़ी राज

५३४ भारत में अंगरेजी राज से उनका कोई मुकावला न करे । उच कोठी के अफसर को भी अंगरेजों ने इस गरज से रिशवत दी कि वह अंगरेजों के विरुद्ध नवाब को मदद न दे अन्त में नवाब और अंगरेजों में सन्धि हो गई । अंगरेज व्यापारियों को कुछ विशेष रिश्रायते मिल गई और आइन्दा के लिए उन्होंने वादा किया कि हम कभी सूरत के शासन इत्यादि में किसी तरह का दखल न देंगे। किन्तु वास्तव में उसी समय से सूरत के नवाब पर अंगरेजों का प्रभाव बढ़ने लगा और नवाव धीरे धीरे अंगरेजों के हाथों की एक कठपुतली बनता चला गया। यह दो अमली चालीस साल तक जारी रही। सन् १७७७ में इस दो अमली को बयान करते हुए पारसन्स नामक एक इतिहास लेखक लिखता है :- "यदि फ्रांसीसी, पुर्तगाल निवासी या उच्च खोग महसूल में कोई भी सबदीली कराना चाहते हैं या कोई नई रिमायत चाहते दो अमली हुकूमत है; और यदि अंगरेज़ मुखिया उनकी इच्छा पूरी करना नहीं चाहता, तो वह उन्हें नवाब के पास भेज देता है और साथ ही नवाब से कहला भेजता है कि उनकी प्रार्थना का अमुक उत्तर दिया जावे xxx वे सब इस तमाशे को समझते है।" स्टैवौरिनस लिखता है :- "सब के लिए कानून बनाने वाले अंगरेज़ हैं, उनकी खास रजामन्दी के बिना न यूरोपियन कुछ कर सकते हैं और न हिन्दोस्तानी । इस विषय में शहर के नवाब में और छोटे से छोटे मगर निवासी में कोई अन्तर नहीं। गो 1 • Bombay Gasetteer, Surat vol. p. 127 toot-note