भारत में अंगरेजी राज • बसीलहीन पर जोर दिया गया कि तुम एक लाख रुपये साखाना की रकम, जिसे हाल में दोनों पक्ष मंजूर कर चुके थे, और बढ़ा दो। नसीरुद्दीन ने अपनी माली हालत बताते हुए माफ़ी चाही, और एक लाख सालाना देने का वादा किया । वेल्सली ने फिर जोर दिया। १८ अगस्त सन् १७६ को सूरत की कोठी के मुखिया सिटॉन ने बम्बई के गवरनर को लिखा :- "मैंने कोई कसर उठा नहीं रक्खी; नवाब पर हद दर्जे का दबाव डाल चुका हूँ। मुझे पूरा यकीन है कि अगर नवाब के पास गुन्जाइश होती तो मह ज़रूर ज्यादा दे देता।" वेल्सली को इसकी सूचना दे दी गई। इसके जवाब में १८ 1 फरवरी सन् १८०० को गवरनर जनरल वेल्सली सूरत की नवाबी ने बम्बई के गवरनर को एक गुप्त पत्र लिखा:- को ब्रत्म करने का "xxx मैं पक्का इरादा कर चुका हूँ कि इरादा नसीरुद्दीन को उस समय तक नवाब स्वीकार नहीं करूँगा, जब तक कि वह अपने और अपने कुटुम्ब के गुज़ारे के काबिल सालाना पेनशन लेकर, जो कि कम्पनी उसे सूरत की सालाना आमदनी में से दिया करेगी, सूरत की दीवानी और फौजदारी के समस्त अधिकार और तमाम मालगुजारी कम्पनी के हाथों में दे देने के लिए राजी न हो जावे ।" इसके बीस दिन बाद इसी मज़मून की सन्धि का एक मसौदा लिखाकर वेल्सली ने बम्बई के गवरनर के पास भेज दिया। साथ • Welesley's Despatches, vol ii, pp 222, 223
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