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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१३१

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भारत में अंगरेज़ी राज

५४४ भारत में अंगरेजी राज नहीं और जान बूझ कर सन् १७६= में यह ख़बरें उड़ाई गई। मित लिखता है कि इससे पहले भी अंगरेज़ अपने मतलब के लिए काबुल के बादशाह के हमलों की झूठी खबरें उड़ा चुके थे ।* किन्तु दौलतराव सींधिया अंगरेजों को समझता था। वह उनको इस चाल में न पा सका । मिल लिखता है - "गोकि इस तरह के हमले से किसी दूसरे को इतनी अधिक हानि न पहुँच सकती थी जितनी महाराजा सींधिया को, तिसपर भी उसने पूना ही में बबरे रहना पसन्द किया । असलीयत यह मालूम होती है कि सींधिया जानता वा कि शाह का भारत पर हमला करना नामुमकिन है।" बेल्सली के लिए अब कोई दूसरी चाल चलना जरूरी हो गया। लार्ड कॉर्नवालिस के समय से कोई रेजिडेण्ट दौलतराव के विरुद्ध सींधिया के दरबार में न भेजा गया था। वेल्सली बेल्सली की ने अब करनल कॉलिन्स नामक एक अंगरेज़ को असफल चाखें वहाँ रेजिडेण्ट नियुक्त करके भेजा। सींधिया स्वयं पूना में था, तथापि करनल कॉलिन्स को सीधा उत्तरी भारत की ओर सींधिया की राजधानी में भेजा गया। कहा गया कि कॉलिन्स को भेजने का उद्देश सींधिया और अंगरेज़ों की मित्रता को पक्का करना है; किन्तु वास्तविक उद्देश था महाराजा दौलतराव की अनुपस्थिति में सोंधिया गज के अन्दर फूट डलवामा, जगह जगह विद्रोह खड़े करना और इस प्रकार की स्थिति पैदा कर देना जिससे दौलतराव को मजबूर होकर अपनी सेना सहित पूना से • Mill, vol vi, pp 125, 128-130