५४६ भारत में अंगरेजी राज करना पड़ा। टीपू पर हमला करने और उसका नाश करने की उसे बेहद जल्दी थी। देर होने से टीपू के अधिक वेल्सली की सावधान हो जाने अथवा उसके मददगार खड़े कठिनाई और हो जाने का डर था। उधर न वेल्सली सींधिया और उसकी सेना का एतबार कर सकता था, न सोंधिया किसी प्रकार पूना से हटता था। और बिना सींधिया के पूना से हटे पेशवा बाजीराव को 'सबसडीयरी सन्धि' अथवा अन्य किसी जाल में फंसा सकना भी असम्भव था। वेल्सलो समझ गया कि जब तक दौलतराव सींधिया को कोई वास्तविक श्रापत्ति अपने सिर पर खड़ी हुई दिखाई न देगी, दौलतराव पूना से न टलेगा और पूना से उसे हटाना श्रावश्यक था। एक नया षड्यन्त्र रचा गया। दौलतगव पर यह इलज़ाम लगाया गया कि वह अंगरेजों के विरुद्ध बनारस के कैदी नवाब वज़ोरमली के साथ साजिश कर रहा है । ३ मार्च मन् १७६६ को मद्रास से बैठे हुए वेल्सली ने करमल पामर के नाम एक "प्राइवेट" पत्र लिखा। इस पत्र में पामर को सूचना दी गई:- "माधोदास के बाग़ पर हमला करते समय वज़ीरअली के जो पत्र पकड़े गए हैं, उनमें उत्तरी हिन्दोस्तान में रहने वाले सोंधिया के मुख्य सेनापति अम्बाजी का एक पत्र मिला है। इस पत्र में मालूम होता है कि अम्बाजी ने दौलतराव सींधिया की ओर से वजीरअली के साथ एक गुप्त सन्धि की है। "वह सन्धि गवरमेण्ट के पास नहीं है, किन्तु अम्बाजी के पत्र से, कामगार नों और नामदार खाँ के पत्रों से, और वज़ीरअली के दूसरे पत्रों से इसमें
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