५४. भारत में अंगरेजी राज तो इस गरज से, ताकि दौलतराव सींधिया डर कर अपने राज्य में वापस पाजावे, इस बहाने वेल्सली ने उसके राज की उत्तर पूर्वी सरहद पर अवध की समस्त अंगरेजी सेना लाकर खड़ी कर दी। इतना ही नहीं, बल्कि वेल्सली ने इस समय तक पूरा इरादा दौलतराव के कर लिया कि टीपू से निपटने के बाद दौलतराव भाश की तजवीजें सींधिया के साथ युद्ध शुरू कर दिया जाय, क्योंकि दौलतराव सींधिया ही उस समय मराठा साम्राज्य के अन्दर सबसे जबरदस्त नरेश था। इस कार्य के लिए वेल्सली ने भारत के अन्य नरेशों को सोंधिया के विरुद्ध फोड़ने के प्रयत्न शुरू कर दिए थे। करनल पामर के नाम पूर्वोक्त पत्र लिखने से बहुत पहले, अर्थात् नवाब वज़ीरअली के पत्रों (!) में वजीरअली और अम्बाजी की साजिश का पता लगने से भी पहले वेल्सली ने कोलबुक नामक एक अंगरेज को बरार के राजा के दरबार में अपना दूत नियुक्त करके भेजा। कोलबुक को भेजने का उद्देश बरार के सैन्यबल का पता लगाना और टीपू और सींधिया दोनों के विरुद्ध बरार के राजा के साथ गुप्त साजिश करना था। ३ मार्च सन् १७६8 से पहले वेल्सली ने कोलबुक को एक पत्र में लिखा- "बरार के राजा का इलाका ऐसे मौके पर है कि दौलतराव सोंधिया के विरुद्ध उसकी मदद हमारे लिए विशेष उपयोगी साबित होगी।"*
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• “ The local position of the Raja's territones appears to render him a peculiarly serviceable ally against Daulat Rao Scindhra " -Governor General's letter to Colebrooke