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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१४२

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पेशवा को फांसने के प्रयत्न

से इनकार कर दिया था। तथापि अदूरदर्शी निज़ाम अब फिर अंगरेज़ों हो के बहकाए में श्राकर कुर्दला की शतों को पूरा करने से इनकार कर रहा था। दिल्ली सम्राट की प्रामानुसार निज़ाम के यहाँ से मराठों को 'चौथ' मिला करती थी। कुर्दला में निज़ाम ने भए सिरे से इस 'चौथ' को अदा करते रहने का वादा किया था। किन्तु अब वह फिर मराठों को चौथ' देने से इनकार कर रहा था। टीपू.के विरुद्ध अंगरेजों के दोनों युद्धों में अंगरेजों को सब से अधिक सहायता निज़ाम से मिली। इस परिस्थिति में कोई श्राश्चर्य नहीं.कि नाना और दौलतराव सींधिया निज़ाम पर हमला करके अपनी 'चौथ' वसूल करने और कुर्दला की शर्तों पर अमल कराने का विचार कर रहे हो । इसमें कोई आश्चर्य नहीं, यदि पेशवा दरबार उस समय टीपू सुलतान के साथ अधिक घनिष्ट सम्बन्ध पैदा करने के.फिक में हो। बहुत सम्भव है कि दौलतराव सींधिया के सेना सहित पूना में पड़े रहने का एक उद्देश यह भी रहा हो कि यदि.अंगरेज निरपराध टीपू पर हमला करें तो दौलतराव टीपू की मदद.के लिए पहुँच जाय । वेल्सली का बयान है कि टीपू के वकील इस अरसे में बराबर पूना में ठहरे हुए थे और टीपू ने इस काम के लिए १३ लाख रुपए पेशवा दरवार के पास भेजे थे, ताकि पेशवा दरबार टीपू की मदद के लिए सेना तैयार कर सके। यदि ये सब बातें सच भी हो तो मराठों का अधिक से अधिक अपराध यह था कि.वे निजाम से अपना हक वसूल करने और टीपू की कम्पनी के.अन्याय से रक्षा करने का विचार कर रहे थे।