पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१४१

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भारत में अंगरेज़ी राज

दोष ५५४ भारत में अंगरेज़ी राज जाल में फंसा सकना दोनों काम पहले से कहीं आसान हो गए। अप्रैल सन् १७६ को रेज़िडेण्ट पामर ने वेल्सली को पूना से लिखा- मराठों पर मूठे "(सींधिया) के वकील रूबाह गाँवर ने मुन्शी क्रीरुद्दीन से कहा हैxxx कि जब मैंने जाधो बौशार से सींधिया के दरबार के हालात पूछे तो बौशार ने मुझसे कहा कि पेशवा और सींधिया मिलकर निज़ाम पर हमला करने और अन्त में टीपू सुलतान के साथ सन्धि करने की तजवीज कर रहे हैं।" अब हमें यह देखना होगा कि निज़ाम और अंगरेजों के विरुद्ध मराठों की जिस साज़िश की ओर ऊपर के पत्र में संकेत किया गया है वह कहाँ तक सच हो सकती थी और दौलतराव सींधिया अथवा पेशवा दरबार का उसमें कहाँ तक दोष पाया जाता है। निस्सन्देह इतिहास से पता चलता है कि नाना फड़नवीस और दौलतराव सींधिया उन दिनों टीपू की खासी कद्र करते थे और अंगरेजों द्वारा टीपू के सर्वनाश को देश के लिए हितकर न समझते थे। यही कारण है कि अंगरेज़ भी पूना में दौलतराव की उपस्थिति से डरते थे। माना और दौलतराव जैसे नीतिज्ञ इस बात को भी अच्छी तरह समझ रहे थे कि देशघातक निज़ाम से अंगरेज़ों को कितना लाभ और देश को कितनी हानि पहुँच रही थी। कुर्दला में निज़ाम भोर मराठों के बीच सन्धि हो चुकी थी। कुर्दला के संग्राम में कम्पनी को सब्सीडीयरी सेना तक ने निज़ाम को सहायता देने