पेशवा को फांसने के प्रयत्न ५६१ (निजाम और पेशवा) की मोर ब्रिटिश सरकार का निस्वार्थ मेम सावित हो जायगा।" यह "निस्वार्थ प्रेम" का प्रदर्शन और उसके साथ यह वादा "अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में" किया गया। उसके साथ कोई किसी तरह की शर्त न थी। किन्तु इस वादे का उद्देश भी पेशवा दरबार को केवल झूठी श्राशाओं में फँसाए रखना था। श्रीरंगपट्टन के पतन का समाचार पाने से पहले पेशवा ने फिर एक बार वेल्सली को लिखा कि पेशवा दरबार की सेना को मदद के लिए बुला लिया जाय, किन्तु व्यर्थ । ४ मई को श्रीरंगपट्टन का पतन हुश्रा। उसी दिन टीपू की मृत्यु हुई। मैसूर राज अंगरेज़ों के हाथों में आ गया। श्रीरंगपट्टन विजय २३ मई सन् १७६४ को वेल्सली ने पूना के के बाद मराठों की अोर वेल्सली रेजिडेण्ट के नाम एक और पत्र लिखा, जिसमें का रुख उसने एक दम अपना रुख बदल दिया और लिखा- "जो इलाका हमने जीता है उसका कोई हिस्सा पेशवा को देने से पहले मैं उस प्रबन्ध ( अर्थात् सब्सीडीयरी सन्धि ) को पूरा करने का प्रयत्न करना चाहता हूँ, जो कि मैंने ८ जुलाई सन् १७६८ की हिदायतों में भापको लिख भेजा है । और मैं आपसे बहुत जल्दो यह जानना चाहता हूं कि यदि इस समय की स्थिति में वे सब प्रस्ताव फिर से पना दरबार के सामने पेश किए जायें तो पूना दरबार को मंजूर होंगे या नहीं।" इसका सीधा मतलब यह कि अब काम निकल चुका था।
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१४८
दिखावट