पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१६०

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५७२
भारत में अंगरेज़ी राज

५७२ भारत में अंगरेज़ी राज क्रियात्मक दृष्टि से वह कम्पनी के हाथों का केवल एक कैदी रह गया। ये सब बातें बाजीराव को मालूम थीं और यही कारण था कि वह कम्पनी की दोस्ती प्राधे दिल से स्वीकार कर रहा था और कम्पनो की सबसीडीयरी सेना को अपने राज से बाहर रखना चाहता था। मालूम होता है वेल्सली भी बाजीराव की बात मान लेने के लिए कुछ कुछ राज़ी था और अधिक के लिए राजडएट के नाम प्रयत्न भी कर रहा था। इस बीच पामर को वेल्सली का 'गुप्त' पूना दरबार से हटाकर करनल क्लोज़ को उसकी जगह रेजिडेण्ट नियुक्त किया गया। यह वही करनल क्लोज़ था, जो कमीशन के एक मेम्बर की हैसियत से टीपू के आदमियों को अपनी ओर फोड़ने में काफ़ी तजरुबा हासिल कर चुका था और उसके बाद कुछ दिनों नए मैसूर राज्य में रेजिडेण्ट का काम भी कर चुका था । २३ जून सन् १८०२ को वेल्सली के सेक्रेटरी एडमॉस्टन ने करनल क्लोज़ के नाम एक 'गुप्त' पत्र में लिखा- "एक ब्रिटिश सेना का खर्च बरदाश्त करने की तजवीज़ के साथ पेशवा ने जो शर्ते लगा दी हैं, उन्हें यदि हम मान लें तो भी इस तजवीज़ द्वारा तुरन्त कुछ न कुछ दर्जे तक पेशवा अवश्य अंगरेजों को ताकत के अधीन हो जायगा !x x x जब कोई राज किसी अंश में एक बार दूसरे की शक्ति के अधीन हो जाता है, तो फिर स्वभावतः उसकी पराधीनता बढ़ती जाती है। जब वह एक बार किसी विदेशी ताकत की मदद के सहारे अपने सई