५७- भारत में अंगरेजी राज संग्राम हुए, जिनमें विजय कभी एक ओर रही और कमी दूसरी ओर । दौलतराव ने जसवन्तराब के साथ सुलह करना चाहा। जसवन्तराध एक बार राजी भी हो गया। किन्तु जसवन्तराव इस समय विदेशियों के हाथों का केवल एक शस्त्र था। एक बार राज़ी होकर उसने फिर सींधिया के साथ विश्वासघात किया। उधर सींधिया के दक्खिन से चलते ही पूना में फिर उपद्रव खड़े हो गए । विट्ठोजी होलकर ने कोल्हापुर में पेशवा दौलतराव की के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। अनुपस्थिति , पेशवा की सेना ने विद्रोही विठोजी को गिरफ्तार में पूना में उपद्रव - करके खत्म कर दिया। जसवन्तराव होलकर विट्ठोजी की मृत्यु का बदला लेने के बहाने अपनी सेना सहित मालवा से पूना की ओर बढ़ा। पेशवा और सींधिया दोनों कम्पनी के दोस्त थे। फिर भी मार्किस घेल्सली के पत्रों से साफ़ ज़ाहिर है कि अंगरेज़ इस समय जसवन्तराव को हर तरह मदद दे रहे थे। करनल वेल्सली के अधीन अंगरेजी सेना भी पूना के पास तक श्रा पहुँची थी। इस हालत में जसवन्तराव को बढ़ते देख कर ११ अकबर सन् १८०२ को पेशवा बाजीराव ने घबरा कर वेल्सली की सारी शर्ते स्वीकार कर ली । उसने रेजिडेण्ट को लिख भेजा कि कम्पनी की जिस सबसीडोयरी सेना का खर्च देना मैंने स्वीकार कर लिया है, उसके स्थाई तौर पर रहने के लिए मैं अपने राज के अन्दर तुगभद्रा नदी के पास एक जिला दे दूँगा और उसके खर्च के लिए भी गुजरात अथवा करनाटक में २५ लाख रु० सालाना
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