५८ भारत में अंगरेजी राज __ मैसूर इत्यादि की सेनाओं ने करनल वेल्सली के अधीन और निजाम की सेनाओं ने करनल स्टीवेन्सन के अधीन जमा होकर पूना की ओर कूच किया । करनल आर्थर वेल्सली के प्रधान ११ हजार और करनल स्टीवेन्सन के अधीन ७ हजार सैनिक थे। करनल प्रार्थर वेल्सली इन दोनों सेनाओं का प्रधान सेनापति था। इस सेना का मुख्य कार्य दक्खिन के जागीरदारों और सरदारों को डरा कर अथवा लोभ देकर उन्हें बाजीराव के पक्ष में करना और पहले से पूना पहुँच कर वहाँ इस तरह के सामान पैदा कर देना था, जिनसे बाद में बाजीराव को लाकर आसानी से मसनद पर बैठाया जा सके । यह वही दक्खिन के जागीरदार थे, जिन्हें कुछ ही दिनों पहले अंगरेजों ने बाजीराव के विरुद्ध भड़का कर उनसे विद्रोह करवाया था। मैसूर की सेनाओं के साथ कम्पनी की वह नई सेना भी थी, जो बसई की सन्धि के अनुसार पेशवा के राज के अन्दर बतौर सबसीडोयरी सेना के रक्खी जाने वाली थी। शुरू मार्च सन् १८०३ में यह सेना हरिहर नामक स्थान पर श्राकर जमा हो गई। मार्किस वेल्सली स्वयं पूना अंगरेजी सेना का पासा पहुँचा । वेल्सली के पत्रों में लिखा पूना के लिए __ है कि यहाँ तक मामला बढ़ जाने के बाद भी वेल्सली इस बात के लिए तैयार था कि यदि पूना में कोई मनुष्य बसई की सन्धि से अधिक लाभदायक सन्धि कम्पनी के साथ कर लेने को राजी हो तो वेल्सली उस समय भी बाजीराव को फिर अलग कर दे, किन्तु उस समय की परिस्थिति प्रस्थान
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