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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१७५

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५८७
बाजीराव का पुनरभिषेक

गाजीराव का पुनरभिषेक ५८७ को फिर से पेशवा बनाने के बाद ही सीपिया और मराठा मण्डल के अन्य सदस्यों के साथ अंगरेजों को युद्ध करना पड़ेगा और बाजीराव को पूना लाने से पहले वह इस युद्ध की पूरी तैयारी कर लेना चाहता था। इसी बीच ताकि जसवन्तराव के पैर पूना में मजबूती से जमने न पावे, जसवन्तराव और पेशवा अमृतराव में कुछ अनबन पैदा करवा दी गई । इतिहास लेखक प्रॉण्ट डफ़ लिखता है कि यद्यपि शुरू में जसवन्तराब का व्यवहार अत्यन्त विनम्र या फिर भी बाद में उसे पूना निवासियों से धन वसूल करना पड़ा। पूना के नगर निवासियों की इस लूट के समय भी करनल लोज जसवन्त- राव के साथ मौजूद था। इस सब के बाद केवल बाजीराव को पूना लाने और उसके साथ साथ कम्पनी की 'सबसीडीयरी' सेना को पूना में कायम करने का काम बाकी था। करनल क्लोज़ अब चुपके से पूना छोड़कर बाजीराव से जा मिला। दक्खिन में एक विशाल सेना पूना पर चढ़ाई करने और वहाँ की स्थिति ठीक करने के लिए जमा की ना गई । इस काम के लिए कम्पनी को किसी अपनी पर चढ़ाई करने पृथक सेना की आवश्यकता न थी। मैसूर तथा हैदराबाद दोनों राज्यों में उन राज्यों के खर्च पर कम्पनी की बड़ी बड़ी सबसीडीयरी सेनाएँ मौजूद थीं। इनके अलावा भिवानकुर, करनाटक इत्यादि की सेनाएँ थीं।