दूसरे मराठा युद्ध का प्रारम्भ ६०३ "मैं इस नीति को बिलकुल ठीक समझता है कि ज्योंही हमें अपने फ्रायदे का कोई मौका दिखाई दे, तुरन्त सींधिया की ताकत को नष्ट कर दिया जाय ।"* ___ उस समय से ही वेल्सली ने करनल कॉलिन्स द्वारा महाराजा सोंधिया के श्रादमियों को अपनी ओर तोड़ना और सींधिया के विरुद्ध उसके राज में जगह जगह साजिशें करना शुरू कर दिया था। समस्त मराठा नरेश कम या अधिक इस आने वाली आपत्ति को देख रहे थे और यथाशक्ति उसके निवारण मराठा मण्डल में के उपाय कर रहे थे। एकता के प्रयत्न बाजीराव पूना पहुँचने के बाद अपनी शोचनीय पराधीनता को और अधिक ज़ोरों से अनुभव करने लगा। पूना पहुँचते ही उसने फिर सींधिया और भोसले दोनों के पास अपने विशेष दूत और पत्र भेजे और उन्हें सलाह के लिए शीघ्र पूना बुलाया। अमृतराव पूना छोड़ चुका था। बाजीराव ही उस समय मराठा साम्राज्य का न्याय्य अधिपति था । बाजीराध की श्राक्षा- नुसार सोंधिया और भोसले के पूना श्राने पर किसी को एतराज न हो सकता था। अंगरेज़ों को सूचना दे दी गई थी कि दौलतराव और भोसले को पूना बुलाया गया है । सब जानते थे कि बसई की • "I am equally satisfied of the policy of reducing the power of Scindhra, whenever the opportunity shall appear advantageous '-Governor Generals letter to Sir Alured Clarke, dated 8th March, 1799
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१९२
दिखावट