सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६३०
भारत में अंगरेज़ी राज

६३० भारत में अंगरेजी राज सर फ़िलिप मन्सिस ने यह भी दिखलाया कि किस प्रकार अंगरेज शासक भारतीय नरेशों के और खास कर उस समय सोंधिया के चरित्र पर बिल्कुल भूठे दोष लगा कर उसे बदनाम करते थे और किस प्रकार के छलों द्वारा उन नरेशों की स्वाधीनता हरते थे। फ्रन्सिस ने जोर देकर कहा- "पहले हमने तिजारत शुरू की, तिजारत से कोठियाँ हुई, कोठियों से किलेबन्दी, किलेबन्दी से सेनाएँ, सेनाओं से देश विजय, और विजयों से हमारी आज कल की हालत ।" __इस वकृता के बाद सर फ़िलिप फैन्सिस का प्रस्ताव केवल यह था कि-'भारत में इलाके विजय करने और अपना राज्य बढ़ाने की योजनाएँ करना अंगरेज़ कौम की इच्छा के विरुद्ध है।' अंगरेज कौम के चुने हुए प्रतिनिधियों ने जबरदस्त बहुमत से इस प्रस्ताव को नामंजूर किया। hardly necessary for him to remind the house, that it was onginally purely commercial, but it was marked on the part of the native pinces with every appearance of good understanding, and even kindness They not only afforded us every facility for carrying on an advantageous trade, but actually conterred on us immunities and exemptions which many of their own subjects did not enjoy It was, in a mercantile point of view, wise in the native princes to encourage trade with foreign nations But while their commercial eye was open, their political eye was closed They did not act on those principles which had so effectually excluded European nations from the dominion of China . . he said, with great emphasis, we first had commerce, commerce produced factones, factories produced garrisons, garrisons pro- duced armies, armies produced conquests, and conquest had brought us into our present situation "-Sr Phihp Francis, in the House of Commons 14th March, 1804. Hansard's Reports.