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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२२४

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६३५
साजिशों का जाल

साज़िशों का जाल ६३५ वाक्य में जनरल वेल्सली ने यह साफ धमकी भी दी कि यदि निज़ाम ने स्वीकार न किया तो मुमकिन है कि होलकर के उत्तर भारत की ओर लौटते समय निज़ाम का सरहदी इलाका लुट जाय। औरङ्गाबाद और उसके आस पास के इलाके लुटने का हाल ऊपर आ चुका है । इसके बाद किसी को अणुमात्र भी सन्देह नहीं हो सकता कि औरङ्गाबाद के लुटने में अंगरेज़ों का हाथ था । यहाँ तक कि लूट के बाद जब निज़ाम ने अंगरेजों से शिकायत की और चाहा कि औरङ्गाबाद की लूट का माल होलकर से निजाम को वापस दिला दिया जाय तो वेल्सली ने साफ़ साफ़ होलकर का पक्ष लिया। किन्तु इस अवसर पर जनरल वेल्सली के पत्रों से मालूम होता था कि करनल स्टीवेन्सन ने निज़ाम के वज़ीर राजा महीपत राम से यह वादा तक कर लिया कि अमीर खाँ जब होलकर को छोड़ कर पा जाय तो उसकी सेना का श्राधा खर्च निजाम दे और श्राधा कम्पनो दे। बाद में काम निकल जाने पर अंगरेज़ इस वादे से साफ मुकर गए; और उलटा राजा महीपत राम पर झूठ का इलज़ाम लगाने लगे। ये सब पत्र वेल्सली के पत्रों में मौजूद हैं और इस स्थान पर उनसे लम्बे उद्धरण देना व्यर्थ है । अन्त में जो कुछ कारण रहा हो, अमीर खो निज़ाम के यहाँ नौकर नहीं रक्खा गया। फिर भी इस पत्र व्यवहार के कारण अमीर खां भीतर ही भीतर होलकर से फटा रहा । इसमें भी सन्देह नहीं है कि होलकर की नौकरी करते हुए भी अमीर खाँ को अंगरेजो से गुप्त धन मिलता था और यदि होलकर सींधिया या भोसले का साथ दे बैठता तो