पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६३७
साजिशों का जाल

साजिशों का जाल "यदि आप लोग अपनी अपनी शक्ति के अनुसार हिन्दोस्तान के उस भाग से दौलतराव सोंधिया की सेना को निकालने में, और-पदि भविष्य में सींधिया या कोई दूसरी बाहरी शक्ति उन प्राम्सों में अपनी सत्ता अमाने का प्रयत्न करे तो उन प्रयक्षों को निष्फल कर देने में, उत्साह और तत्परता के साथ अंगरेज़ सरकार की मदद करेंगे, तो आपको पैतृक जागीरों पर आपका बेरोक टोक कब्ज़ा रहने दिया जायगा इत्यादि ।"* इस कठिन कार्य को पूरा करने लिए कई योग्य अफसर मरसर के अधीन नियुक्त किए गए और इलाहाबाद, कानपुर तथा इटावा के कलेक्टरों को इस बात की हिदायत की गई कि मरसर को अपने गुप्तचरों के खर्च के लिए जितने भी रुपयों की जरुरत हो और जितना रुपया मरसर मांगे, तुरन्त बिना पूछे भेज दें और उसे गवनर जनरल के नाम लिख लें। २७ जुलाई सन् १८०३ को मार्किस वेल्सली ने जनरल लेक के नाम एक अत्यन्त लम्बा और महत्वपूर्ण 'गुप्त' पत्र लिखा, जिसमें. व्योरेवार भारत के उन नरेशों और सरदारों के नाम दिए, जिन्हें लोभ और रिशवते देकर सींधिया के विरुद्ध फोड़न की गवरनर- the undisturbed possession of their hereditary tenures on the condition of their zealous and ready co-operation with the British. Government, to the extent of their respective means, in expelling the troops of Daulat Rao Scandhia from that quarter of Hindostan, and preventing any tuture attempts on the part of that chieftain, or of any other toreign power, to establish an authority in these provinces "-Letter dated 22nd July, 1803 from Mr Edmonstone, Secretary to Government, addressed to. Mr. G. Mercer, Marked 'Most Secret '