पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६४१
साजिशों का जाल

साजिशों का जाल अन्तर यह रहा कि जब कि मैसूर के राजकुल को टीपू के साथ विश्वासघात करने के बदले में अपने पैतृक राज की थोड़ी सी फाँक किसी शर्त पर मिल गई, दिल्ली सम्राट को दौलतराव सींधिया के साथ विश्वासघात करने के बदले में अंगरेजों की अोर से भी केवल विश्वासघात ही प्राप्त हुआ । यह वही शाह- आलम दूसरा था जिसने बङ्गाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी के अधिकार कम्पनी को प्रदान किए थे। कुछ वर्ष बाद जब इस "तहरीरी इकरारनामे" की शर्तों को पूरा कराने के लिए शाहबालम के उत्तराधिकारी सम्राट अकबरशाह ने राजा राममोहन राय को अपना वकील बना कर और 'इकरारनामा' देकर इङ्गलिस्तान भेजा तो वहाँ के शासकों ने उत्तर दिया कि-"इकरारनामा कम्पनी के काग़ज़ों में कहीं नहीं मिलता।"* उस समय तक भारत के मुगल सम्राट की प्रायः समस्त भूमि और उसके सदियों के अधिकार अंगरेज कम्पनी के हाथों में पहुँच चुके थे। इस विचित्र उत्तर को सुनकर पार्लिमेण्ट के सदस्य सलीवन रोज ने उठ कर कहा- ____"xxx क्या यह शाहमालम का कसूर है कि 'इकरारनामा' कम्पनी के कागजों में नहीं मिलता ?xxx इस मामले में मुगल सम्राट के साथ गहरा विश्वासघात किया गया है।xxx"t • "The Court would be surprised to hear that the document . . called an Ikrarmama was nowhere to be found on the records of the Court, or in those of the Supreme Government of India, . ."-Speech of the Chairman of Directors at the East India House, 18th December, 1848. +" was it the fault of Shah Alam that this document was not upon