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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२३७

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६४६
भारत में अंगरेज़ी राज

६४६ भारत में अंगरेज़ी राज सममता हूँ कि माहौर का राजा रणजीतसिंह सिक्खों में सबसे प्रधान गिना माता है और सब सिख सरदारों के उपर उसका खासा प्रभाव है। "सधिया दरबार के रेजिडेएट के एजेण्ट ने जिन सिक्ख सरदारों के साथ पहले (सन् १८०० में ) पत्र व्यवहार किया था, उनके नाम पत्र मैं मापके पास भेजता हूँ ताकि आप जिस समय और जिस तरह अत्यन्त सन्धित सममें, ये पत्र उनके पास भिजवा दें। "चूंकि जिस युद्ध का हम इरादा कर रहे हैं उसके मैदानों से लाहौर बहुत दूर है, इसलिए राजा रणजीतसिंह से केवल इस सहायता की प्राशा की जा सकती है कि वह दूसरे सिक्ख सरदारों पर अपना प्रभाव डाल कर उन्हें अंगरेज सरकार के पक्ष में कर दे।" पञ्जाब का कुछ भाग उस समय दौलतराव सींधिया के अधीन था और वहाँ के सिक्ख सरदार दौलतराव को खिराज देते थे। इसलिए इस पत्र में आगे चलकर गवरनर जनरल ने लिखा:- ____ "इनमें से जो सरदार मराठों के अधीन हैं और उन्हें खिराज देते हैं, उनसे वायद यह वादा करके कि अंगरेज सरकार प्रापकी रक्षा करेगी और भविष्य में भापका निराज विलकुल माफ कर दिया जायगा, उन्हें मराठों से फोड़ा जा सके। "यदि उन सरदारों से सहायता मिलना असम्भव प्रतीत हो तो कम से कम उन्हें तटस्प रख सकना भी बड़े महत्व की बात होगी।