पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२३६

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६४५
साजिशों का जाल

साजिशों का जाल ६४५ सा उत्तर पच्छिम में पञ्जाव तक सींधिया का राज्य था। पजाब में उस समय सिक्खों की कई नई रियासते पैदा दौलतराव के विरुद्ध हो रही थीं और लाहौर में महाराजा रणजीत सिक्ख सरदारों के " सिंह का सूर्य उदय हो रहा था। रणजीतसिंह हैदरअली और शिवाजी के समान अशिक्षित, वीर और युद्ध विद्या में अत्यन्त निपुण था, किन्तु उसमें न शिबाजी जैसी दूरदर्शिता अथवा राजनीतिज्ञता थी और न हैदरअली जैसा प्रचण्ड साहस और देश प्रेम । मार्किस वेल्सली को डर था कि कहीं सिक्खों की शक्ति इस युद्ध में मराठों के साथ न मिल जाय; और इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि वीर सिक्स यदि उस समय मराठों का साथ दे जाते तो १६ वीं शताब्दी के ऐन शुरू में ही अंगरेज़ कम्पनी के पाँव भारत से उखड़ गए होते। वेल्सली ने कोशिश की कि सिक्ख यदि इस समय अंगरेजों का साथ न दे तो कम से कम तटस्थ रहे । २ अगस्त सन् १८०३ को मार्किस वेल्सली ने एक गुप्त और सरकारी पत्र में जनरल लेक को लिखा:- "जिन मुख्य मुख्य सिक्ख सरदारों के प्रभाव और प्रयत्नों से हम सबसे अधिक फायदा उठा सकते हैं, वे पटियाले का राजा और वे सब छोटे छोटे सरदार हैं जिनके इलाके पटियाला और जमना के बीच में है । तथापि मैं and of inducing them to unute with the British Government for the over- throw of Scindhia's power in the Doab, . . . ."-Marquess Wellesley's 'Secret ' letter to General Lake, dated 30th July, 1803