साम्राज्य विस्तार सुलहनामा लिखा गया, ताकि इसके बाद स्थायी सुलह की शर्ते तय की जा सके। इस अस्थायो सुलहनामे में लिखा गया कि दक्खिन में, गुजरात में तथा प्रत्येक अन्य स्थान पर युद्ध तुरन्त बन्द कर दिया जाय। वेल्सली ओर सोंधिया के धकीलों के इस अस्थायी सुलहनामे पर हस्ताक्षर हो गए । सुलहनामे की अन्तिम धारा यह थी :- "इस सुलहनामे पर महाराजा दौलतराव सींधिया के हस्ताक्षर होने चाहिएँ, और उनके हस्ताक्षर होकर भाज से दस दिन के अन्दर मेजर जनरल वेल्सली के पास आ जाने चाहिए।" अंगरेजों की दौलतराव सींधिया के वकीलों ने जोर दिया कि सुलहनामे में सींधिया और भोसले दोनों मराठा नरेशों का नाम होना चाहिए और दोनों के साथ अंगरेजों असली मंशा का युद्ध बन्द हो जाना चाहिए। किन्तु वेल्सली ने यह बहाना लेकर कि भोसले की ओर से कोई पृथक वकील नहीं आया, भोसले का नाम सुलहनामे में देने से इनकार किया। भोसले का नाम इस अस्थायी सुलहनामे में न रखने का असली कारण जनरल वेल्सली ने गवरनर जनरल के प्राइवेट सेक्रेटरी मेजर शों के नाम अपने २३ नवम्बर सन् १८०३ के पत्र में इस प्रकार बयान किया:- "बार के राजा की सेनाएं इसमें शामिल नहीं की गई, और इसी से इन दोनों नरेशों में फूट पड़ जायगी। बदि सौंधिया के ऊपर कोई एतबार
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