पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६७९
साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार ६७६ वेल्सली के पास आये हुए थे और अभी तक वेल्सली के साथ मौजूद थे, खबर पाकर बहुत कुछ कहा सुना और खेल्सली को सुलहनामे की याद दिलाई, किन्तु सब व्यर्थ । जनरल वेल्सली ने अपने सरकारी पत्रों में इस विश्वासघात के लिए दो कारण बतलाए हैं। एक यह कि अभी तक सींधिया ने सुलहनामे पर हस्ताक्षर करके न भेजे थे। किन्तु सींधिया के वकीलों के हस्ताक्षर सुलहनामे पर हो चुके थे और सुलहनामे के जाने और सींधिया के हस्ताक्षर होकर लौटने के लिए सुलहनामे ही के अन्दर साफ़ दस दिन नियत कर दिए गए थे। दूसरा कारण वेल्सली ने यह बताया है कि सुलहनामे की शर्तों में से एक यह भी थी कि दोनों सेनाओं में कम से कम २० कोस का फ़ासला रहे, जिसे सींधिया की ओर से पूग नहीं किया गया। तमाशा यह था कि एक तो स्वयं दौलतराव को इसके प्रबन्ध के लिए अभी समय न मिल पाया था और दूसरे वेल्सली के पत्रों से साबित है कि इन 2 दिनों के अन्दर जितना जितना सींधिया की सेना पीछे हटती गई उतना उतना ही अंगरेज़ी सेना जान बूझ कर आगे बढ़ती गई । सारांश यह कि वेल्सली के दोनों बहाने झूठे थे। वेल्सली का अपने इस छल से जो मतलब था वह पूरा हो _ गया। सींधिया की सेना समय पर पहुँच भी न भरगाँव की विजय - पाई और अरगाँव का किला अंगरेजों के हाथों में आ गया । अरगाँव की विजय की खबर पाते ही गवरनर जनरल ने प्रसन्न होकर जनरल वेल्सली को लिखा:-