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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२७१

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भारत में अंगरेज़ी राज

६८० भारत में अंगरेजी राज _fxxxबपि सुबह करने के मामले में मैं पाप से विलकुल सह- मत था, मैं उसे बड़ी होशियारी की बात समझता था, किन्तु मैं स्वीकार करता हूँ कि भापकी सुबह की अपेक्षा आपकी विजय को मैं अधिक पसन्द करता हूँ।" इसके बाद गवरनर जनरल ने लिखा कि-"मुझे अभी तक पता नहीं चला कि लड़ाई का कारण क्या हुआ । क्या सींधिया ने अपनी ओर से सुलह तोड़ दी ? याxxx सुलह के शुरू होने से पहले ही अकस्मात् कहीं पर दोनों फौजें भिड़ गई ? या सींधिया और बरार के राजा फिर दगा करके एक दूसरे से मिल गए ? किन्तु कहीं पर भी और किसी तरह से भी क्यों न हुश्रा हो, इन देशी राजाओं से लड़ने में सदा ही फायदा है।"* अरगाँव के बाद उसी तरह के छल से वेल्सली ने बरार के गाविलगढ़ विजय - राज में गाविलगढ़ के किले पर हमला किया ' और तीन दिन की लड़ाई के बाद १४ दिसम्बर सन् १८०३ को गाविलगढ़ का किला भी अंगरेजों के हाथों में श्रा • " . . . Although I enturely approved of your armustice and thought it is a most judicious measure, I contess that I prefer your victory to your armistice , . . . . "I have not yet discovered whether the battle was occasioned by a rupture of the truce on the part of Scindhra, . or by an accidental encounter of the armies before the truce had commenced, or by a treacherous Junction between Scandhia and the Raja of Berar But, Qua cunquera, a battle is a profit with the Native Powers "-Governor-General's letter to General Wellesley, dated 23rd December, 1803