भारत में अंबरेजी राज हमला करने के लिए कोई बहाना भी नहीं हो सकता था। फिर भी यदि इससे पहले फांसीलियों के भारत पर हमला करने की कोई सम्भावना हो सकती हो तो अब वह भी बिलकुल जाती रही। किन्तु जैसा हम खिख चुके हैं ये सब बाते बेल्सली के लिए केवल बहामा थीं, उसका असली उद्देश दूसरा और स्पष्ट था। ५ नवम्बर को वेल्सली ने फिर टीपू को एक अत्यन्त मित्रता सूचक पत्र लिखा। - नवम्बर को अपनी तैयारी देखकर वेल्सली ने रक बदला और एक अत्यन्त उद्दण्डतापूर्ण पत्र में मारीशस के एलान का जिक्र करते हुए टीपू को लिखा कि-"श्राप यह गुमान न करें कि मेरे देश के शत्रुत्रों के और आपके बीच जो बातें हुई हैं उनकी ओर से मैं उदासीन रह सकता हूँ।" इत्यादि । केवल चार दिन के अन्दर टोपू की ओर वेल्सली के रुख में यह अचानक परिवर्तन हो गया। इसी पत्र में वेल्सली ने टीपू को यह धमकी दी कि एक अंगरेज अफ़सर मेजर डवटन को इस उद्देश से आपके छेरछाप दरबार में भेजा जायगा ताकि शान्ति कायम रखने के लिए जिन जिन जिलों की अंगरेजों को जरूरत है, उन्हें वह श्राप से मांग ले । अंगरेजों की तैयारी अब पूरी हो चुकी थी, इसीलिए टीपू से अब साफ़ छेड़छाड़ शुरू कर दी गई। पाँच दिन बाद वेल्सली ने अपनी जल सेना के सेनापति रेनियर को लिखा कि-"हैदराबाद को ठीक कर लिया गया है, और समुद्र तट पर दोनों ओर हमारी युद्ध की तैयारियाँ खूब हो चुकी हैं। इसलिए “यह अवसर हमारे लिए अच्छा है और मैं इस अवसर से
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