पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२८२

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साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार तरह की भी सहायता नी, किसी ने हमारा सुख मुकाबला करने का साहक तो न किया, किन्तु वे सब के सब जपवर अलग बैठे रहे। उन्होंने अपने कागजात छिया दिए और किसी तरह की सूचना हमें न दी। उन्होंने छ जगह किस्तियों, बैल और गालियाँ हमारे रास्ते से हटा कर दूर भेज दीं। जिन जमींदारों को हमने वह हुकुम दिया कि प्राप छोग कटक पाकर अपनी अपनी जायदादों के मामले में सब तय कर लें, वे नहीं पाए और अब उनके धों पर उन्हें तलाश किया गया तो नहीं मिले। कहा गया कि कहीं बाहर यात्रा को गए हैं, यह कोई नहीं बताता था कि कहां गए हैं। किन्तु यदि अनजाने भी अंगरेज अफसरों से कोई ग़लती हो जाती थी, सो इसी जब निर्जीव जन समूह में एकाएक जान पा जातो थी, और जोरों के साथ वार कार शिकायतें होने लगती थीं ।"* निस्सन्देह उड़ीसा को प्रजा अपने मराठा और अन्य देशी . शासकों की जगह पर विदेशी कम्पनो के शासन । में आना पसन्द न करती थी। शीघ्र हो साबित दुष्काल न हो गया कि उनकी प्राशङ्काएँ बिलकुल सच्ची थीं । जे बोम्स लिखता है कि-अंगरेजों के पहुँचते ही प्रान्त मह • "Well aware of our ignorance of the country, they all with one accord abstained from helping us in any way, no open resistance was ventured upon, but all stolidly sat aloot-papers were hidden, information withlheld, boats, bullocks and carts sent out of the way, the Zemundars who 'were ordered to go into Cuttack to settle for their estate did not go, and on searching for them at their homes could not be found, were reported as absent, on ajourney, no one knew where But if from ignorance the English •officers committed any mistake, then lite suddenly returned to the dull amert mass, and complaints were loud and incessant " J Beams in the above Notes.