पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६९०
भारत में अंगरेज़ी राज

६६० भारत में अंगरेजो राज मयूरभञ्ज की रानी पहले अंगरेजों के साथ मिलने के विरुद्ध थी और लड़ने के लिए तैयार हो गई। हारकोर्ट ने उसे पहले का खुशामद के पत्र लिखे। इस पर भी वह राज़ी न हुई। तब रानी के दत्तक पुत्र युवराज के साथ गुप्त पत्र व्यवहार करके, युवराज को रानो से फोड़ा गया। इस प्रकार करनल हारकोर्ट ने रानी को क्यों त्यों कर राजी कर लिया और मयूरभञ्ज की रियासत का कुछ भाग भी कम्पनी के अधीन कर लिया। ___ होते होते १२ जनवरी सन् १८०४ को सम्बलपुर पर अंगरेजों ने कब्जा किया और उड़ीसा का वह सारा भाग जो मराठा साम्राज्य में शामिल था अंगरेज कम्पनी के शासन में आ गया। मराठों के शासन में उड़ीसा की प्रजा अत्यन्त खुशहाल थी। जे०बीम्स लिखता है कि चावल उस समय उस डीसा में अंगरेजी प्रान्त में १५ गण्डे का एक सेर यानी एक सासन रुपए का सत्तर सेर (पौने दो मन) विकता था। प्रान्त भर में कोई यह जानता ही न था कि दुष्काल किसे कहते हैं। इसी लिए, जे० बीम्स लिखता है कि जिस समय अपना राज जमाने के लिए अंगरेज़ी सेना ने उड़ीसा प्रान्त में प्रवेश किया:- "वहाँ के लोगों ने यह अच्छी तरह जानते हुए कि हम उस देश से अपरिचित थे, सब ने प्रापस में एका कर लिया और किसी ने हमें किसी two states Sples were sent into Moharbhanj and Nilgirn to keep a watch on the chiets, and passports were to be granted to their vakils or representa- tives, should they desire to visit Cuttack."-J. Beams in the above Notes.