पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२८८

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साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार खुबान और उस जैसे अन्य अनेक विश्वासपातकों की सहायता से ४ सितम्बर को ही अलीगढ़ का "प्रत्यास अलगिक विजय मजबूत" किला अंगरेज़ों के हाथों में आ गया। फिर भी कहा जाता है कि लेक की सेवा के बहुत से आदमी अलीगढ़ की लड़ाई में काम पाए। ___ इस मामले में सींधिया की सेना के फ्रान्सीसी सेनापति पैरों की नीयत भी सन्दिग्ध मालूम होती है । जनरल लेक के कानपुर से चलते समय पैरों अपनी सेना के साथ अलीगढ़ में मौजूद था। लिखा है कि पैरों के पास एक बड़ी सेना थी और हिन्दोस्तान भर में अलीगढ़ का किला सर्वथा अजेय और अलंध्य प्रसिद्ध था। स्वयं जनरल लेक ने मार्किस वेल्सली को अपनी विजय का समा- चार देते हुए लिखा कि -"इस किले की असाधारण मजबूती को देखते हुए मेरी राय में, अंगरेज़ों को वोरता इससे अधिक ज़ोरों में कभी न चमकी होगी।" पैरों ने एक बार अपनी सेनाएँ जमा करके किले की रक्षा का इरादा ज़ाहिर किया। उसके बाद जनरल लेक पैरों का चरित्र के पहुंचने से पहले किले को अपने एक फ्रान्सीसी मातहत पैद्रा के ऊपर छोड़ कर पैरों एकाएक हाथरस चला गया। इतिहास लेखक मिल ने यह कह कर पैरों के चरित्र की प्रशंसा की है कि-"यदि वह अंगरेजों के साथ सौदा करके अपना युद्ध का भारी सामान अंगरेज़ों के हवाले कर देता तो उसे अंगरेजों से एक बहुत बड़ी रकम मिल जाती, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया।"