पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३१६

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७२५
जसवन्तराव होलकर

जसवन्तराव होलकर ७२५ एक दूसरे की ओर रिवाजी भादर सस्कार दिखलाने पर निर्भर नहीं है। उचित यह है कि परिणाम को अच्छी तरह सोच समझ कर आप पहले मुझे यह सूचना दीजिये कि आप सब झगड़ों को तय करने, प्रजा की सुख शान्ति में बाधा न पड़ने देने और मित्रता कायम रखने के लिए किन किन उपायों की तजवीज़ करते हैं, साकि उसके बाद मैं आपके पास एक ऐसा विश्वस्त श्रादमी भेज सकू जिसे दोनों पक्ष वाले मार कर लें आपके प्रेम पर हर सरह विचार करते हुए, कम्पनी या उसके मित्रों की ओर मेरे दिल में किसी तरह की शत्रुता के विचार नहीं हैं। हमारी इस मित्रता को बढ़ाने के लिए आप भी प्रेम पत्र भेजने की मुझ पर कृपा करते रहिए।" जसवन्तराव का पत्र अत्यन्त विनम्र और उचित था, फिर भी __ जनरल लेक ने इसके उत्तर में ४ अप्रैल सन् लेक का उत्तर १८०४ को होलकर को लिखा- "x x x आपकी माँगें वे बुनियाद हैं, और आपको यह मालूम होना चाहिए कि अंगरेज़ सरकार ने हिन्दोस्तान या दक्खिन की किसी भी रियासत के साथ अपने राजनैतिक सम्बन्ध मे इस तरह की माँगें आज तक कभी मार नहीं की और इस तरह की माँगें सुनना भी अंगरेज़ सरकार की ताकत और शान के खिलाफ है।" इसका साफ़ अर्थ यह था कि सिवाय युद्ध के और कोई उपाय इन मामलों को तय करने का न था। उधर जनरल लेक के ४ अप्रैल के पत्र के उत्तर में माकिस वेल्सली ने १६ अप्रैल को एक “गुप्त" पत्र द्वारा युद्ध की योजना जनरल लेक को सूचना दी- -