पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३१९

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७२८
भारत में अंगरेज़ी राज

७२८ भारत में अंगरेजी राज जनरल वेल्सली ने जनरल लेक पर जोर देना शुरू किया कि पहले आप उत्तर से जसवन्तराव पर हमला करें, किन्तु ठीक यही कठिनाई, जो दक्खिन में वेल्सली को थी, उत्तर में लेक को भी थी। जसवन्तराव होलकर के विरुद्ध अंगरेज़ इस समय सबसे अधिक दौलतराव सोंधिया और उसकी थि सबसीडीयरी सेना की सहायता पर निर्भर थे। सन्धि का जसवन्तराव और दौलतराव में अंगरेज़ों ही के सबब शुरू से अनबन और एक दूसरे पर अविश्वास चला श्राता था। अंगरेजों ने इस अविश्वास को बनाए रखने और उससे लाभ उठाने का सदा भरसक प्रयत्न किया। किन्तु इस समय उनके सामने एक भारी कठिनाई यह थी कि दौलतराव सींधिया भी उनसे सर्वथा सन्तुष्ट न था । इस असन्तोष का मुख्य कारण यह था कि जो सन्धि हाल में कम्पनी और दौलतराव के बीच हो चुकी थी, अंगरेज़ पद पद पर उसका उल्लंघन कर रहे थे। सबसे पहली बात यह कि उस सन्धि के अनुसार ग्वालियर का किला और गोहद का इलाका दौलतराव को मिलना चाहिए था। किन्तु मार्किस वेल्सली के इस इलाके पर बहुत पहले से दाँत थे। उसने खली सीनाजोरी द्वारा इस इलाके को कम्पनी के अधिकार में रखना चाहा । जनरल वेल्सली ने जनवरी सन् १८०४ से अप्रैल सन् १८०४ तक के कई पत्रों में कम्पनी के इस विश्वासघात को अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है । मेजर मैलकम के नाम १७ मार्च के एक पत्र में जनरल वेल्सली ने लिखा-