पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३३३

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७४२
भारत में अंगरेज़ी राज

७४२ भारत में अंगरेजी राज पराजय अपने सवारों सहित ल्यूकन की सहायता के लिए उसके साथ रहिए । मॉनसन स्वयं पैदल पलटनों के साथ पीछे की ओर रहा । बापूजी सींधिया के सवारों ने ल्यूकन के सवारों के साथ आगे बढ़ कर होलकर की सेना का मुकाबला किया। कहते हैं कि ल्यूकन की ओर के कुछ भारतीय सवार इस लड़ाई में अंगरेजों का साथ छोड़ कर होलकर की ओर जा मिले । थोड़ी देर के संग्राम के बाद होलकर की सेना ने ल्यूकन के शेष समस्त सवारों को उसी मैदान में खेत कर को दिया और ल्यूकन को कैद कर लिया। यह वही ल्यूकन था जो दौलतराव सींधिया की नौकरी में रह चुका था और जिसने सींधिया के साथ विश्वासघात करके अलीगढ़ का मज़बूत किला अंगरेजों के हवाले कर दिया था। इसके बाद कोटा पहुँच कर ल्यूकन होलकर ही की कैद में पेचिश से मर गया। बापूजी सीधिया को भी इस संग्राम में भारी हानि सहनी पड़ी। उसके सात सौ सवार मर गए या घायल होकर बेकार हो गए और उसका बहुत सा सामान होलकर के सिपाहियों ने छीन लिया। बापूजी स्वयं अपने शेष थके माँदे सवारों सहित पीछे हट कर मॉनसन से जा मिला। मॉनसन के पास इस समय पर्याप्त पैदल सेना थी। फिर भी होलकर के बढ़ते ही आगे बढ़ कर होलकर से मॉनसन का मोरचा लेने के स्थान पर मॉनसन ने घबरा कर अब पीछे की ओर भागना शुरू किया और भागना