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भारत में अंगरेज़ी राज

७४ भारत में अंगरेजी राज की मदद इसी पत्र में गवरनर जनरल ने लेक को अाशा दी कि होलकर की सेना के सब लोगों को आमतौर पर और “पठानों और मुसलमानों" को खास तौर पर लोभ देकर अपनी ओर मिलाया जाय। २६ जुलाई को मॉनसन रामपुरा पहुँचा । जनरल लेक ने समा. चार पाते ही आगरे से दो पलटन देशी मॉनसन को लेक सिपाहियों की. कुछ सवार, छै तोपे और बहुत सा रसद का सामान मॉनसन के पास भेजा और उसे रामपुरा से निकल कर होलकर पर हमला करने को लिखा। किन्तु २२ अगस्त सन् १८०४ तक मॉनसन को रामपुरा से बाहर निकलने का साहस न हो सका, और २२ अगस्त को रामपुरा से निकलने पर भी होलकर पर हमला करने के स्थान पर उसने फिर कुशलगढ़ की ओर भागना शुरू किया। इसका कारण यह था कि कुशलगढ़ में सदाशिव भाऊ भास्कर के अधीन सींधिया की छै पलटन और २१ तोपें मौजूद थीं, जो शुरू में बापू जी सींधिया के साथ से अलग हो गई थीं, मॉनसन को प्राशा थी कि यह सेना होलकर के विरुद्ध मेरा साथ देगी और कुशलगढ़ ही में अपनी सेना के लिए मुझे काफ़ी रसद भी मिल सकेगी। उधर जसवन्तराव ने अभी तक मॉनसन का पीछा न छोड़ा detachment has retired altogether from Malwah with loss of guns, camp equipage, etc and in great distress "-Marquess Wellesley's 'Private ' letter to General Lake,dated 17th August, 1804