जसवन्तराव होलकर ७४ पराजय था। मॉनसन के रामपुरा से निकलते ही २३ अगस्त की शाम को बनास नदी के किनारे होलकर अपनी सन को फिर सवार सेना सहित फिर एक बार मॉनसन से चार मील की दूरी पर आ पहुँचा । २४ अगस्त को सवेरे मॉनसन के दाहिने हाथ पर एक बड़े गाँव में होलकर ने डेरे डाले। मॉनसन ने अब अपनी कुछ सेना को सामान के साथ बन्नास के पार कर दिया और शेष सेना लेकर एक बार हिम्मत करके होलकर की सेना पर हमला किया। शुरू में एक लमहे के लिए मॉनसन का पल्ला कुछ भारी मालूम होता था, किन्तु अन्त में यहाँ पर भी होलकर की सेना ने इस पार की अंगरेजी सेना को करीब करीब खत्म कर दिया। होलकर के कुछ सवार नदी पार करके मॉनसन के सामान के पीछे लपके। लाचार होकर मॉनसन को अपने सब सामान, मुदौ, जख्मियों, यहाँ तक कि थके माँदे लोगों को भी पीछे छोड़ कर जान बचा बन्नास पार कर कुशलगढ़ की ओर भागना पड़ा । २५ अगस्त की रात को मॉनसन कुशलगढ़ पहुँच गया। कुशलगढ़ जयपुर के राज में था। सदाशिव भाऊ भास्कर के अधीन सींधिया की सेना यहाँ पर मौजूद थी। मॉनसन का प्रागरे मॉनसनको पूरीश्राशा थी कि यह सेना अंगरेजों की ओर भागना - ___ का साथ देगी। मार्किस वेल्सली के पत्रों से पता चलता है कि वह भी इस बात के लिए हर तरह जोर लगा रहा था। किन्तु सींधिया और उसके श्रादमियों के दिलों में
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