पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३४

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भारत में अंगरेज़ी राज

पूर्णिया ४६२ भारत में अमरेजी राज पहला धोखा जो टीपू के कुछ नमकहराम सलाहकारों और जासूसों ने उसे दिया वह यह था कि उन्होंने टीपू को विश्वास दिलाया कि कम्पनी की सारी सेना चार या पांच हजार से अधिक नहीं है। टीपू ने खबर पाते ही अपने विश्वस्त ब्राह्मण मन्त्री और सेनापति पूनिया के अधीन कुछ सवार शत्रु के विश्वासघातक मकाबले के लिए भेजे। रायकोट नामक स्थान से करीब दो कोस पर इस सेना की कम्पनी की सेना से मुठभेड़ हुई। किन्तु पूनिया भीतर से अंगरेजों से मिला हुआ था। उसने बजाय मुकाबला करने के कम्पनी की सेना के दाएँ बाएँ चक्कर लगाने शुरू किए । कम्पनी की सेना आगे बढ़ती रही। पूनिया की सेना के एक दल ने आगे बढ़कर वीरता के साथ शत्रु को रोका और एक बहुत बड़ी संख्या को तलवार के घाट उतारा । पूनिया ने यह देख कर अपने वीर सवारों को शाबाशी देने की जगह उन्हें अत्यन्त कड़े शब्दों में लागत मलामत की। सवार समझ गए कि पूनिया लड़ना नहीं चाहता। इसके बाद कम्पनी की बढ़ती हुई सेना को रोकने या उनसे लड़ने के बजाय विश्वासघातक पूनिया की सेना शत्रु के आगे पीछे बतौर उनके संरक्षकों के चलती रही। यह सुन कर कि कम्पनी की सेना आगे बढ़ी चली आ रही है, सुलतान टीपू ने स्वयं सेना सहित आगे बढ़ने का विचार किया। उसके सलाहकारों ने फिर कमहीन उसे धोखा दिया । जनरल हैरिस की सेना एक