पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३५

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४६३
टीपू सुल्तान

टीपू सुलतान ४६३ खास रास्ते से श्रीरंगपट्टन की ओर बढ़ रही थी। टीपू के सलाह- कारों ने उसे दूसरा रास्ता बतला दिया और टोपू ने एक गलत सड़क पर जाकर रे डाल दिए । ज्योंही टीपूको इस विश्वासघात का पता चला, उसने फौरन तेजी के साथ आगे बढ़कर गुलशनाबाद के पास सामने से हैरिस की सेना को रोका। कुछ देर तक खूब घमासान युद्ध हुआ, जिसमें सुलतान के अनेक सिपाहियों और सेनानियों ने वोरता के हाथ दिखाए । कम्पनी की सेना और खास कर तोपखाने को ज़बरदस्त हानि सहनी पड़ी। ठोक मौके पर सुलतान ने अपने एक सेनापति कमरुद्दीन खां को सवारों सहित । आगे बढ़कर शत्रु को समाप्त कर देने की बाधा दी। किन्तु कमलद्दीन खाँ भी अपने आपको अंगरेजों के हाथ बेच चुका था, मौका मिलते ही शत्रु पर हमला करने के बजाय वह थोड़ा आगे बढ़ कर उलटा लौटा और एकाएक अपने सवारों सहित सुलतान की सेना के एक भाग पर टूट पड़ा। टीपू के अनेक जाँबाज सिपाही इस समय काम आए, अनेक हैरान होकर पीछे हट गए और कमरहीम खां के विश्वासघात के प्रताप मैदान अंगरेजों के हाथ रहा। इतने में टीपू को पता चला कि एक दूसरी सेना जनरल . स्टूअर्ट के अधीन बम्बई से भीरंगपट्टन की ओर बम्बई की सेना -बढ़ी चली आ रही है, फ़ौरन कुछ सरदारों को जनरल हैरिस के मुकाबले के लिए छोड़कर टीपू अपनी समस्त सेना और तोपखाने सहित जनरल स्टूअर्ट का मार्ग रोकने के लिए बढ़ा। दोरात और एक दिन के लगातार कुच के बाद टीपू ने बम्बई