पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३५३

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जसवन्तराव होलकर

जसवन्तराव होलकर लिए जायँ, इत्यादि । इस बार करनल मरे को इतनी सफलता प्राप्त हुई कि ५ जुलाई सन् १८०४ को करनल मरे फिर उज्जैन की ओर बढ़ा। बिना किसी विरोध के = जुलाई को वह उज्जैन पहुँच गया और धीरे धीरे उज्जैन से बैठ कर उसने "बिना किसी तरह की लड़ाई के", आस पास के समस्त इलाके और होलकर की राजधानी इन्दौर तक पर एक बार कब्जा कर लिया। निस्सन्देह इस अद्भुत कार्य में जसवन्तगव की अनुपस्थिति से करनल मरे को बहुत बड़ी सहायता मिली। उधर दक्खिन में जनरल वेल्सली के चले जाने के बाद कम्पनी की सेनाओं का नेतृत्व करनल वैलेस को मिला । वैलेस को दक्खिन २२ अगस्त को करनल वैलेस पूना से चला । में सफलता १८ सितम्बर तक उसकी सेना ने गोदावरी को पार किया । २७ और ३० सितम्बर को और अधिक सेना वैलेस से आकर मिल गई । अक्तूबर के शुरू में पेशवा की निजी सेना भी वैलेंस से श्रा मिली। उसी महीने में वैलेस ने चान्दौर पर और नापती नदी के दक्खिन में होलकर के अन्य कई किलों पर कब्ज़ा

  • “Colonel Murray having submitted to the Governor General several

questions relative to the extent to which he might be permitted to encourage desertion among the adherents of Jaswant Rao Holkar, and to offer to them employment in the service of the allies, the Governor General in Council deemed it to be advisable to furnish Colonel Murray with in- Structions. "-Despatch of the Governor General in Council to the Secret Committee, dated 24th March, 1805 + " Without any resistance " Above despatch