पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३६३

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भरतपुर का माहासरा

भरतपुर का मोहासरा ७६६ जिससे विवश होकर भरतपुर के राजा रणजीतसिंह को अंगरेजों के विरुद्ध होलकर का साथ देना पड़ा। मार्किस वेल्सली ने भरतपुर की प्रजा के कुछ प्रतिष्ठित लोगों .. पर यह दोष लगा कर, कि वे होलकर के साथ भरतपुर में अंगरेजों गुप्त पत्र व्यवहार कर रहे थे, लेक को यह प्राज्ञा ___ की धांधली दी कि भरतपुर राज से उन लोगों को ज़बरदस्ती गिरफ्तार करके अंगरेज़ी इलाके में लाकर अंगरेज़ी अदालत के सामने उनका कोर्ट मार्शल किया जाय । भरतपुर एक स्वाधीन रियासत थी। किन्तु राजा रणजीतसिंह से न इस मामले में राय ली गई, न दरबार से किसी तरह की तहकीकात कराई गई और न भरतपुर की प्रजा को गिरफ्तार करने या सज़ा देने के लिए राजा की इजाज़त तक की आवश्यकता समझी गई । पहले राजा को यह श्राज्ञा दी गई कि जिन जिन को लेक कहे उन्हें, फौरन गिरफ्तार करके अंगरेज़ों के हवाले कर दो। इसके बाद गवरनर जनरल ने लेक को अधिकार दे दिया कि श्राप बिना राजा से पूछे उसकी प्रजा के इन लोगों को ज़बरदस्ती गिरफ्तार करके अंगरेज़ी इलाके में ले पाएँ और उन्हें गोली से उड़वा दें। कोई नरेश, जिसे अपनी प्रान का ख़याल हो, इस तरह की धृष्टता और जबरदस्ती सहन नहीं कर सकता । जनरल लेक के इस समय के एक एक पत्र से साबित है कि वह भरतपुर राज का अन्त कर देने के लिए लालायित था और इसे एक अत्यन्त सरल कार्य समझे हुए था। राजा रणजीतसिंह के पास अब जसवन्तराव ४६