पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३६४

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७७०
भारत में अंगरेज़ी राज

७७० भारत में अंगरेजी राज होलकर को अंगरेजों के विरुद्ध मदद देने के सिवा और कोई चारा न था। इसके अतिरिक्त निर्वासित होलकर ने भरतपुर के राज में शरण ली थी। न्याय और साधारण शिष्टता भी राजा रणजीतसिंह से यही चाहती थी कि वह अपने शरणागत अतिथि की सहायता करे। लेक भरतपुर के राजा को परास्त करना कितना सरल समझता था, यह उसके नीचे लिखे शब्दों से जाहिर है । २७ नवम्बर सन १८०४ को उसने गवरनर जनरल के एक पत्र के उत्तर में लिखा- "xxx मैं अब फ़ौरन राजा रणजीतसिह और उसके किलों पर हमला करके उन्हें अपने अधीन किए बिना नहीं रह सकता ।"* अंगरेज़ों ने डीग के किले का मोहासरा करने का निश्चय किया । दिसम्बर सन् १८०४ को जनरल लेक अपनी र सेना लेकर डीग पहुँचा । १० दिसम्बर को किले " की दीवार तोड़ने के लिए आगरे से गोला, बारूद और तोपें आई। १३ को गोलाबारी शुरू हुई। दस दिन के प्रयत्न के बाद २३ दिसम्बर को एक ओर की दीवार का कुछ भाग टूट पाया। इसो बीच किले के भीतर की समस्त सेना, जो वास्तव में भरतपुर ही जाना चाहती थी, किले से निकल कर सुरक्षित भरतपुर पहुँच गई । २३ की श्राधी रात को टूटे हुए हिस्से it will not be in any power to avoid attacking and reducing him and his forts without delay'"-General Lake to Marquess Wellesley, dated 27th November, 1804