पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३६८

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७७३
भरतपुर का माहासरा

भरतपुर का मोहासरा ७७३ पर भी अनेक जाने खोकर अंगरेज़ी सेना को विवश पीछे लौट आना पड़ा ___ इस प्रकार भरतपुर पर कब्ज़ा करने का पहला प्रयत्न निष्फल गया। १२ दिन तक फिर गोलाबारी होती रही। इसके बाद दूसरी बार २१ जनवरी सन् १८०५ को अंगरेजी सेना फिर असफलता ने नगर में प्रवेश करने का और अधिक ज़ोरों के साथ प्रयत्न किया; किन्तु इस बार भी सफलता न मिल सकी। इस दूसरे प्रयत्न की असफलता के विषय में जनरल लेक ने मार्किस वेल्सली को लिखा- ___x x x मुझे यह लिखते हुए दुख होता है कि खाई इतनी अधिक चौड़ी और गहरी निकली कि उसे पार करने की जितनी कोशिशें की गई सब बेकार साबित हुई, और हमारी सेना को बिना अपना उद्देश पूरा किए अपनी खन्दकों में लौट पाना पड़ा। ____ “हमारी सेना ने सदा की भाँति दृढ़ता से काम किया, किन्तु इतनी देर तक, इतने ज़ोरों से और इतने ठीक निशाने के साथ उनके ऊपर गोले बरसते रहे कि मुझे डर है, हमारा नुकसान बहुत अधिक हुआ है।" निस्सन्देह भरतपुर के किले और फ़सील के ऊपर की वे तोपें, and the column after making several attempts, with heavy loss, was obliged to retire "-General Lake to Marquess Wellesley, 10th January +". I am sorry to add, that the ditch was found so broad and deep, that every attempt to pass it proved unsuccessful, and the party was obliged to return to the trenches, without effecting their object