पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३६९

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७७४
भारत में अंगरेज़ी राज

७७४ भारत में अंगरेजी राज जिनकी भयङ्कर श्राग ने दो बार शत्रु के मुंह मोड़ दिए, इस समय योग्य और विश्वासपात्र भारतीय वीरों के हाथों में थीं। इन दोनों बार के प्रयत्नों में अंगरेजों की ओर जान और माल दोनों का इतना अधिक नुकसान हो चुका था का कि अब लेक को बिना बाहर से मदद पाए तीसरा प्रयत्न तीसरी बार हमला करने की हिम्मत न हो सकी। करीब एक मास तक अंगरेज़ी सेना खाली पड़ी रही। इस बीच करनल मरे होलकर के मध्यभारत के इलाकों पर कम्पनी की श्रोर से कब्ज़ा करके गुजगत लौट गया। करनल मरे के अधीन गुजरात की जितनी सेना थी वह सब अब मेजर जनरल जोन्स के अधीन १२ फ़रवरी सन् १८०५ को जनरल लेक की सहायता के लिए भरतपुर आ पहुँची। आगरे और अन्य स्थानों से नया सामान नई और अधिक भारी तो मँगाई गई । फरवरी के शुरू में ऐसे मौके देखकर कि जहाँ पर फ़सील कम चौड़ी मालूम होती थी, अंगरेजी सेना ने फिर गोलबारी शुरू की। अन्त में एक नई श्रोर से रास्ता बना कर २० फरवरी सन् १८०५ को कम्पनी की सेना ने तीसरी बार भरतपुर के अन्दर प्रवेश करने का प्रयत्न किया। लेकिन जिस रास्ते से कम्पनी की सेना ने भीतर घुसना चाहा, " The troops behaved with their usual steadiness, but I fear, from the heavy fire they were unavoidably exposed to, for a considerable time, that our loss has been severe"