७७६ भारत में अंगरेजी राज कारण मजबूर कर दिया। इसमें सन्देह नहीं कि उस ऐन सङ्कट के समय, जब कि गोरी सेना के अनुशासन और शूरता दोनों का अन्त हो चुका था, यदि कम्पनी के हिन्दोस्तानी सिपाही अपनी जान पर खेल कर आगे न बढ़ते तो भरतपुर की विजयी सेना उसी दिन भरतपुर के मैदान में अंगरेज़ी मेना को समाप्त करके लेक और उसके सहजातियों की समस्त प्राशाओं पर पानी फेर देती। भरतपुर की सेना के विरुद्ध जनरल लेक के इन तीन बार के प्रयत्नों के निष्फल जाने का मुख्य कारण असफलता के निम्सन्देह यह था कि भरतपुर की फ़सील के अन्दर राजा रणजीतसिंह या जसवन्तराव होलकर दोनों में से किसी की सेना में इस समय कोई भी विश्वास घानक न था। इसी प्रकार भरतपुर की वीर भारतीय सेना यदि २० फरवरी सन् १८०५ को बाहर की अंगरेजी सेना का खात्मा न कर सकी तो इसका भी एकमात्र कारण यह था कि कम्पनी के उन धनक्रीत भारतीय सिपाहियों में, जिन्होंने ऐन मौके पर अपने देश वासियों के विरुद्ध अंगरेजों का साथ दिया, 'देशीयता' या 'राष्ट्रीयता' के भाव का सर्वथा अभाव था। जनरल लेक के इस तीसरे प्रयत्न की असफलता का समाचार सुनकर मार्किस वेल्सली घबरा गया। ५ मार्च वेल्सली की सन् १८०५ को उसने जनरल लेक को एक लम्बा पत्र लिखा। इसमें युद्ध को शीघ्र समाप्त करने के विस्तृत उपाय सुझाते हुए मार्किस वेल्सली ने लिखा- घबराहट
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