पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३७०

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भरतपुर का माहासरा

T फलता भरतपुर का मोहासरा ७७५ उसी रास्ते से भीतर की भारतीय सेना ने बाहर निकल कर कम्पनी - की संना पर हमला कर दिया। कम्पनी के तीसरी बार अंगरेजों अनेक अंगरेज अफसर और असंख्य देशी और विदेशी सिपाही वहीं पर भारतीय गोलियों का शिकार हो गए। यहाँ तक कि भीतर की सेना ने अंगरेज़ों की आगे की खन्दको पर भी कब्ज़ा कर लिया । अंगरेज़ों की ओर सब से आगे गोरी पलटने थीं। जनरल लेक ने इन लोगों को आशा दी कि तुम आगे बढ़ कर शत्रु को नगर के अन्दर वापस ढकेल दो। उनके अफसरों ने उन्हें खूब समझाया और हिम्मत दिलाई, किन्तु इन गोरे सिपाहियों के दिलों में इतना डर बैठ गया था और भरतपुर की सेना की ओर से गोलियों की बौछार इतनी भयङ्कर थी कि इन लोगों ने आगे बढ़ने से साफ इनकार कर दिया। उस सङ्कट के समय जनरल लेक ने अपने हिन्दोस्तानी पैदलों की दो रैजिमेण्टों को आगे बढ़ने का हुकुम दिया । ये लोग वीरता के साथ भागे बढ़े । भरतपुर के अन्दर प्रवेश कर सकने की दृष्टि से अंगरेज़ों का यह तीसरी बार का प्रयत्न भी सर्वथा निष्फल गया। किन्तु कम्पनी के हिन्दोस्तानो सिपाहियों ने वीरता के साथ बढ़ कर लड़ते लड़ते भरतपुर की सेना को नगर के अन्दर वापस चले जाने पर • “ The Europeans, however, of His Majesty's 75th and 76th, who were at the head of the column, refused to advance, The entreaties and expostulations of their officers failing to produce any effect, two reg1- ments of Native Infantry, the 12th and 15th, were summoned to the front, and gallantly advanced to the Stom"-Mall vol vi, p 426