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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३८०

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७८४
भारत में अंगरेज़ी राज

७८४ भारत में अंगरेजी राज वीरान कर दिया है, जिसके कारण मुझे भारी आर्थिक और अन्य हानियाँ सहनी पड़ रही हैं, इत्यादि । अन्त में दौलतराव सींधिया ने गवरनर जनरल को सूचना दी :- "अब मैं दृढ़ निश्चय कर चुका हूँ कि अपनी पुरानी सेनाएँ जमा करके और नई सेनाएँ भरती करके एक बहुत बड़ी सेना तैयार करूँ और फिर शत्रु को दण्ड देने के लिए निकलू ; क्योंकि मैं इस बात को देख कर कैसे संतुष्ट रह सकता हूँ कि जिस इलाके को विजय करने में करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं और बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ ली गई हैं और जो इलाका एक दीर्घकाल से मेरे अधिकार मे रहा है वह अब दूसरे के हाथों मे चला जाय । शत्रु के हाथों से अपने इलाके को छीन लेना कोई अधिक कठिन कार्य नहीं है । केवल अपने मित्रों की सफाई और दिली हमदर्दी की ज़रूरत है और किसी तरह की मदद की ज़रूरत नहीं।" ____निस्सन्देह सींधिया की सारी शिकायतें सच्ची थी, और पत्र के अन्तिम वाक्य से स्पष्ट है कि उसी समय वह लाचार होकर अंगरेज़ों और उनके मददगारों से लड़ने और अपने इलाके वापस लेने का दूढ़ सङ्कल्प कर चुका था। ___ इस बीच रेज़िडेण्ट वेब की मृत्यु हो गई । जेनकिन्स उसकी जगह रेज़िडेण्ट नियुक्त होकर सींधिया दरबार में भेजा गया। जेनकिन्स का व्यवहार भी महाराजा दौलतराव के साथ उतना ही खराब रहा जितना कि वेब का रह चुका था। यहाँ तक कि विवश होकर दौलतराव सोंधिया ने जेनकिन्स को अपने यहाँ कैद कर लिया।