पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३७९

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७८३
भरतपुर का माहासरा

भरतपुर का मोहासरा ७८३ अनुचित और असभ्य रहा। गोहद और ग्वालियर के मामले में अंगरेज़ों ने हाल की सन्धि का साफ़ उल्लङ्घन किया, मेरे कुमारकुण्डा और जामगाँव इत्यादि इलाकों में अंगरेजों ने अनेक तरह के उपद्रव खड़े करवा दिए और फिर सन्धि की शर्तों के अनुसार उन्होंने न मुझे अंगरेज़ी सेना की सहायता दी और न अपनी प्रजा की रक्षा के लिए मुझे स्वयं उन इलाकों तक सेना ले जाने दी। बापूजी सींधिया के साथ जनरल मॉनसन का व्यवहार आद्योपान्त लज्जाजनक रहा; यद्यपि अंगरेज़ मुझे अपना मित्र कहते थे और यद्यपि पिछली सन्धि के अनुसार मेरे इलाके की रक्षा करना अंगरेज़ों का वैसा हो कर्त्तव्य था जैसा अपने इलाके की रक्षा करना, फिर भी जिस समय करनल मरे अपनी सेना सहित उज्जैन में मौजूद था, ठीक उसी समय जसवन्तराव होलकर दो महीने तक माण्डेश्वर के किले का मोहासरा करता रहा और आस पास के समस्त इलाके में लूट मार मचाता रहा, किन्तु करनल मरे ने उसकी ज़रा भी परवा न की; उसी समय होलकर के सरदार अमीर खाँ ने जो अंगरेजों से मिला हुआ था, भिलसा के किले को घेर लिया। भिलसा नगर और आस पास के तमाम इलाके को लूटा और किले पर कब्जा कर लिया, किन्तु अंगरेज़ों ने या करनल मरे ने ज़रा भी परवा न की और न मेरी ज़रा भी सहायता की। पिछले युद्ध के बाद से अब तक सन्धि के साफ़ विरुद्ध मेरे अमुक अमुक इलाके पर अंगरेज़ों ने स्वयं कब्जा कर रखा है, अमुक अमुक इलाके दूसरों को दे रक्खे हैं, और अमुक अमुक इलाका उजाड़ कर